आज के नोट्स में हम भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रमुख कारण और महत्त्व के बारे में पढेंगे। क्रिप्स मिशन की असफलता, जापान की सेना को प्राप्त होने वाली निरंतर सफलताओं, बर्मा और मलेशिया से भागकर आए हुए भारतीयों के प्रति ब्रिटिश सरकार का दुर्व्यवहार, युद्ध के कारण आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धि में कठिनाई, और वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि से भारतवासियों में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष में निरंतर वृद्धि हो रही थी।
गाँधीजी ने बढ़ रहे फासिस्ट और जापान के भारत पर आक्रमण के खतरे के बारे में कहा, “यदि जापानी सेना भारत में घुसी तो वह अंग्रेजों के शत्रु के रूप में आएगी, भारत का शत्रु होकर नहीं।” अतः उन्होंने जोर देकर अंग्रेजों से कहा कि वे भारत छोड़कर चले जाएँ ताकि भारत पर जापानी आक्रमण होने का कोई भी कारण नहीं रहे। अब कांग्रेस ने तय किया कि ऐसे सक्रिय कदम उठाए जाएँ ताकि मजबूर होकर अंग्रेज स्वतंत्रता-संबंधी भारतीय मांग को स्वीकार कर लें।
भारत छोड़ो प्रस्ताव
14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस-कार्यकारिणी ने वर्धा में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया। 7 अगस्त, 1942 को कांग्रेस का पूर्ण अधिवेशन बम्बई में शुरू हुआ और अगले दिन (अर्थात् 8 अगस्त, 1942) को पर्याप्त वाद-विवाद के बाद भारत छोड़ो (Quit India) प्रस्ताव पारित हो गया। इस प्रस्ताव में मांग की गई कि अंग्रेजों को बिना शर्त तुरंत भारत को छोड़ जाना चाहिए। अगर अंग्रेज ऐसा नहीं करते तो इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तुरंत ही गाँधीजी के नेतृत्व में एक अहिंसक जनसंघर्ष शुरू किया जाएगा।
प्रस्ताव की मुख्य बातें
- अंग्रेजों से बिना शर्त भारत छोड़ने की मांग
- अहिंसक जनसंघर्ष की योजना
- स्वतंत्र भारत के लिए सभी संसाधनों का उपयोग
8 अगस्त, 1942 की रात को कांग्रेस प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए गाँधीजी ने कहा, “तुरंत स्वतंत्रता चाहता हूँ, अगर हो सके तो, पौ फटने से पहले — ‘करो या मरो’, हम भारत को स्वतंत्र कराएंगे अथवा इस प्रयास में मर मिटेंगे।”
युद्ध का समय
सितंबर 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया। इस स्थिति में भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने भारतीय नेताओं से परामर्श लिए बिना ही भारत की ओर से जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। भारतीय नेताओं ने वायसराय के इस अपमानजनक कार्य का तीव्र विरोध किया। इसके अलावा, कांग्रेस की स्वतंत्रता की मांग के प्रति ब्रिटिश सरकार का दृष्टिकोण अस्पष्ट एवं निराशापूर्ण था।
महत्त्वपूर्ण तिथियाँ | घटनाएं |
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7 अगस्त, 1942 | कांग्रेस का बम्बई में अधिवेशन |
8 अगस्त, 1942 | भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित |
9 अगस्त, 1942 | गाँधीजी और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी |
जब मार्च 1942 में जापानी सेनाएँ बर्मा में भारत की सीमाओं तक पहुँच गई, तो ब्रिटिश सरकार अत्यधिक चिंतित हुई और उसे तत्काल कदम उठाने की जरूरत महसूस हुई।
आन्दोलन की शुरुआत
प्रस्ताव पारित होने के बाद, गाँधीजी के नेतृत्व में 9 अगस्त, 1942 को सूर्योदय से पहले ही, ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी तथा कांग्रेस के समस्त प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, कांग्रेस को गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया और सभाओं व जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया।
जनसंघर्ष: राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी से देशवासियों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ। छात्र, मजदूर, दुकानदार आदि ने सड़कों और गलियों में जुलूस निकाले, सभाएं की और हड़तालों का आयोजन किया। सरकारी भवनों पर हमले भी किए गए, और अंग्रेज़ी हुकूमत ने भी अपनी दमनात्मक नीति तेज कर दी।
आन्दोलन के प्रभाव
भारत छोड़ो आन्दोलन का अन्तिम लक्ष्य भारत को स्वतंत्रता दिलाना था, जो संभव हुआ।
गाँधीजी का प्रसिद्ध नारा ‘करो या मरो’ आज भी याद किया जाता है। जानें भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में अधिक जानकारी.
भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रमुख कारण और महत्त्व: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
भारत छोड़ो आन्दोलन कब शुरू हुआ?
भारत छोड़ो आन्दोलन 8 अगस्त, 1942 को शुरू हुआ।
गाँधीजी का प्रसिद्ध नारा क्या था?
गाँधीजी का प्रसिद्ध नारा ‘करो या मरो’ था।
क्रिप्स मिशन की असफलता का क्या कारण था?
क्रिप्स मिशन के असफल होने का प्रमुख कारण भारतीय नेताओं की मांगों को नहीं मानना था।
भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में द्वितीय विश्वयुद्ध का क्या महत्व था?
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार की कमजोर स्थिति ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को तेज कर दिया था।