काव्यांग परिचय: काव्यांग का परिचय देते समय हम सबसे पहले काव्य गुणों की बात करते हैं। काव्य में ओज, प्रवाह, चमत्कार, और प्रभाव उत्पन्न करने वाले तत्त्व ही काव्य-गुण कहलाते हैं।
काव्य-गुण के प्रकार
काव्य-गुण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:
गुण | परिभाषा | उपयुक्त रस |
---|---|---|
माधुर्य गुण | जिस काव्य रचना को पढ़ने या सुनने से चित प्रफुल्लित हो जाता है उसे माधुर्य गुण कहते हैं। | शृंगार, शांत, करुण रस |
प्रसाद गुण | जिस काव्य रचना को सुनते ही अर्थ समझ में आ जाए, वहाँ प्रसाद गुण माना जाता है। | करुण, हास्य, शांत, वात्सल्य रस |
ओज गुण | जिस काव्य रचना में साहस, वीरता और प्रभाव उत्पन्न होता हो, वहाँ ओज गुण माना जाता है। | वीर, रौद्र रस |
छंद शास्त्र का परिचय
छंद शब्द का मूल संस्कृत भाषा से है। यह छद् धातु से बना है और इसका शाब्दिक अर्थ होता है – *बाँधना*, *फुसलाना*, *प्रसन्न करना* या *मात्राओं का ध्यान रखना*।
छंद की परिभाषा
साहित्य की ऐसी रचना जिसमें यति, गति, पाद, चरण, दल इत्यादि के नियम लागू होते हैं, उसे छंद कहते हैं।
छंदशास्त्र का इतिहास
छंद शब्द का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के 10वें सूक्त (पुरुष सूक्त) के 90वें मंडल के 9वें मंत्र में यह प्राप्त होता है।
छंदशास्त्र को वेदपुरुष के पैर अंग के रूप में भी स्वीकार किया गया है। आचार्य पिंगल द्वारा रचित *छंदःसूत्र ग्रंथ* (सातवीं सदी ई. पू.) को छंदशास्त्र का आदिग्रंथ माना जाता है।
छंद की मुख्य विशेषताएँ
- मात्रा सदैव स्वर वर्णों के साथ ही लगती है।
- ह्रस्व स्वरों (अ, इ, उ, ऋ) के साथ लघु तथा दीर्घ स्वरों (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ) के साथ गुरु मात्रा लगती है।
- यदि किसी ह्रस्व स्वर के तुरंत बाद कोई आधा अक्षर, हलंत या विसर्ग आ रहा हो, तो ह्रस्व स्वर पर भी गुरु मात्रा का प्रयोग होगा।
- अनुस्वार का प्रयोग भी ह्रस्व स्वर के साथ गुरु मात्रा का सूचक होता है।
जैसे: हंस – (3 मात्राएँ) एवं हँस – (2 मात्राएँ)
गण
तीन वर्गों के समूह को गण कहते हैं। छंदशास्त्र में कुल 8 गण माने जाते हैं। गण निर्धारण के लिए निम्न सूत्र का उपयोग किया जाता है:
यमाताराजभानसलगा
कुछ प्रमुख छंदों की जानकारी
1. हरिगीतिका छंद
यह एक सममात्रिक छंद होता है, जिसमें प्रत्येक चरण में 28-28 मात्राएँ होती हैं एवं यति हमेशा 16-12 मात्राओं पर होती है। उदाहरण:
कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए। हिम के कणों से मानो पूर्ण, हो गए पंकज नए।
2. छप्पय छंद
यह विषम मात्रिक छंद होता है। इसमें 6 पंक्तियाँ होती हैं। प्रथम 4 पंक्तियों में 24-24 तथा अंतिम 2 में 28-28 मात्राएँ होती हैं।
नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है। सूर्य चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है।।
3. कुंडलिया छंद
यह विषम मात्रिक छंद होता है और दोहा तथा रोला छंद से बनता है। इसमें 6 पंक्तियाँ होती हैं। उदाहरण:
बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय। काम बिगारे आपनो, जग में होत हंसाय।।
4. सवैया छंद
यह वर्णिक छंद होता है, जिसमें प्रत्येक चरण में 22 से 26 तक वर्ण होते हैं।
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारो। आठहुँ सिद्धि नौनिधि को सुख नंद की धेनु चराय बिसारौं।।
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काव्यांग परिचय: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
काव्य गुण किसे कहते हैं?
काव्य में ओज, प्रवाह, चमत्कार और प्रभाव उत्पन्न करने वाले तत्त्व काव्य-गुण कहलाते हैं।
काव्य-गुण कितने प्रकार के होते हैं?
काव्य-गुण तीन प्रकार के होते हैं: प्रसाद गुण, माधुर्य गुण और ओज गुण।
माधुर्य गुण किन रसों में प्रयुक्त होता है?
माधुर्य गुण शृंगार, शांत और करुण रस में प्रयुक्त होता है।
लौकिक साहित्य में छंदशास्त्र का प्रवर्तक आचार्य कौन माने जाते हैं?
लौकिक साहित्य में आचार्य पिंगल को छंदशास्त्र का प्रवर्तक आचार्य माना जाता है।
हरिगीतिका छंद में यति किस स्थान पर होती है?
हरिगीतिका छंद में यति हमेशा 16-12 मात्राओं पर होती है।